पंचायत तो बनी, पर पंचायती राज कहाँ बना?हर जिले की पंचायतें भ्रष्टाचार की गिरफ्त में, सरपंच-सचिव पांच साल में बन रहे हैं लकपति
हर पांच साल में सरपंच-सचिव बदलते हैं, लेकिन समस्या नहीं। भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं, पर कार्रवाई नहीं होती।

संवाददाता – संतोष यादव,
बस्तर। पंचायत राज की कल्पना गाँधीजी ने गाँवों की आत्मनिर्भरता और पारदर्शिता के लिए की थी, लेकिन आज हालात इसके बिल्कुल विपरीत नजर आते हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग से लेकर पूरे प्रदेश में ग्राम पंचायतें भ्रष्टाचार का अड्डा बनती जा रही हैं।
हर पांच वर्षों में पंचायत चुनाव के बाद चुने गए सरपंच और नियुक्त सचिव कुछ ही वर्षों में आर्थिक रूप से इतने मजबूत हो जाते हैं कि उन्हें “लकपति” कहा जाने लगा है। सवाल यह उठता है कि क्या यह पारदर्शी शासन व्यवस्था का उदाहरण है या जनधन का दुरुपयोग?
सरकारी योजनाओं – जैसे मनरेगा, प्रधानमंत्री आवास योजना, शौचालय निर्माण, गोठान योजना, जलापूर्ति योजना – में लगातार अनियमितताओं की शिकायतें मिल रही हैं। पंचायतों में निर्माण कार्यों के नाम पर केवल कागजी कार्रवाई हो रही है, जबकि ज़मीनी स्तर पर जनता को उसका लाभ नहीं मिल रहा।
जनता का कहना है कि ग्राम सभाएं केवल औपचारिकता बनकर रह गई हैं। पारदर्शिता और जवाबदेही के नाम पर कुछ नहीं हो रहा। कोई निगरानी तंत्र भी प्रभावी नहीं है।
अब सवाल यह है – क्या इसी पंचायती राज का सपना देखा गया था?
(जारी…)
निर्माण कार्यों में भी भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए हैं, खासकर स्कूल भवन, आंगनबाड़ी केंद्र, सीसी रोड, नाली, हैंडपंप जैसी योजनाओं में। कई ब्लॉकों से लगातार शिकायतें मिल रही हैं कि निर्माण कार्य अधूरे हैं या बेहद खराब गुणवत्ता के साथ किए गए हैं। बावजूद इसके, अब तक किसी जिम्मेदार अधिकारी या जनप्रतिनिधि पर कार्रवाई नहीं हुई है।
ग्राम सभाएं नाम मात्र की हो गई हैं और आम जनता को कोई जवाब नहीं मिलता। लाखों-करोड़ों के बजट का सही उपयोग हो रहा है या नहीं, इस पर कोई निगरानी नहीं है।
अब सवाल यह है –
क्या ग्राम स्वराज्य और पारदर्शिता का सपना यूं ही कागज़ों में दम तोड़ता रहे है
ग्राम पंचायतों में ग्रामीणों को कोई रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है, जिससे नाराज़ ग्रामीण अब दूसरे शहरों की ओर पलायन की योजना बना रहे हैं। कई गांवों में महीनों से मनरेगा के तहत कोई काम शुरू नहीं हुआ है। मजदूरों की मजदूरी का भुगतान समय पर नहीं हो रहा, और कभी काम मांगने पर उन्हें “बजट नहीं है” कहकर टाल दिया जाता है।
सरकारी आंकड़ों में तो सैकड़ों “जॉब कार्ड” बने हैं, लेकिन ज़मीन पर हालात ऐसे हैं कि जॉब कार्डधारी मजदूर शहरों में ईंट-भट्ठों, निर्माण स्थलों और खेतों में दिहाड़ी मजदूरी के लिए मजबूर हैं।
इससे पहले पंचायतों में घटिया निर्माण और भ्रष्टाचार की खबरें सामने आईं थीं, जिन पर आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। अब रोजगार के नाम पर भी ग्रामीण ठगे जा रहे हैं।
क्या यही है ग्राम विकास? क्या इसी के लिए पंचायत बनी थी?
(जारी… अगली रिपोर्ट में – कौन-कौन सी पंचायतों में रोजगार नहीं, और कितने लोगों का हो चुका है पलायन
कोटमसर पंचायत: वर्षों से अधूरे पड़े निर्माण कार्य, ग्रामीण बेहाल
दरभा ब्लॉक में विकास कार्यों का हाल चिंताजनक, पंचायत में जवाबदेही नहीं
बस्तर। दरभा विकासखंड की कोटमसर ग्राम पंचायत में वर्षों से अधूरे पड़े निर्माण कार्य पंचायती राज व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं।
ग्रामवासियों का आरोप है कि पंचायत में शुरू किए गए कई निर्माण कार्य जैसे शौचालय, सीसी रोड, नाली निर्माण, आंगनबाड़ी भवन तथा जलस्रोत योजनाएं अधूरी हैं। कुछ जगह तो नींव भरकर छोड़ दी गई, कहीं दीवारें खड़ी कर निर्माण रोक दिया गया, तो कहीं सामग्री लाकर छोड़ दी गई, जिसका उपयोग अब तक नहीं हुआ है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि बार-बार शिकायतों और जनप्रतिनिधियों को जानकारी देने के बावजूद ना कोई ठेकेदार काम पूरा कर रहा है और ना ही पंचायत या विभाग कोई संज्ञान ले रहा है।
गांव के बुजुर्गों से लेकर युवाओं तक में नाराजगी है कि
जब चुनाव आता है तो वादे किए जाते हैं, लेकिन काम शुरू होकर अधूरे ही छोड़ दिए जाते हैं। विकास का नाम केवल पत्थर पट्टियों और फोटों तक सिमट गया है।”
मनरेगा के तहत रोजगार भी कागजों तक सीमित है। काम मांगने पर ग्रामीणों को “बजट नहीं” या “मशीनरी आई नहीं” कहकर लौटा दिया जाता है। इससे तंग आकर कई परिवारों ने दूसरे शहरों की ओर रोजगार के लिए पलायन शुरू कर दिया है।
अब बड़ा सवाल है —
क्या पंचायत को ज़िम्मेदार ठहराने के लिए कोई तंत्र है?क्या अधूरे कार्यों की जांच होगी?
और सबसे जरूरी — क्या ग्रामीणों को न्याय मिलेगा?पंचायत के अधूरे कार्यों की सूची और शिकायतों पर भी कोई करवाई नही
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